Tuesday, May 22, 2012

दिल्ली दिल वालो की - 2

दिल्ली दिल वालो की - 2


क़ुतुब मीनार से हम लोग माँ कात्यायिनी मंदिर छतरपुर पहुंचे. यह मंदिर क़ुतुब से २.५ कीलोमीटर दूर हैं. और गुडगाव, मेहरोली मार्ग पर पड़ता है. यह मंदिर दरअसल मंदिरों का समूह हैं. और माँ कात्यायिनी को समर्पित हैं. यह मंदिर समूह अपने आप में भारत में स्थित सबसे बड़े मंदिर समूहों में से एक हैं. इस मंदिर की स्थापना संत नागपाल जी के द्वारा १९७४ में की गयी थी. उनकी समाधी इस मंदिर में ही स्थित हैं. यह मंदिर पूरी तरह से संगमरमर से बनाया गया हैं, और संगमरमर का का काम देखने लायक हैं. ये पूरा परिसर ६० एकड में फैला हुआ हैं. जिसमे छोटे बड़े करीब २० मंदिर हैं. उसमे मुख्य मंदिर माँ आदि शक्ति कात्यायिनी देवी का है. माँ कात्यायिनी माँ आदि शक्ति का अवतार हैं. और ९ देवियों में से एक शक्ति मानी गयी हैं. इस के अलावा इस मंदिर समूह में श्री राम, श्री कृष्ण, श्री गणेश, हनुमान जी, भगवान शिव आदि के मंदिर स्थित हैं.

प्यारा मंदिर 

राघव बाबू 

अन्दर का नज़ारा 

छतरपुर मंदिर से होकर के हम , चूँकि काफी देर हो चुकी थी, रात होने वाली थी, सीधे वैशाली रवि के घर पहुँच गए, और खा पी कर सो गए. अगले दिन सुबह फिर सैर के लिए निकल पड़े. सबसे पहले इंडिया गेट पर पहुंचे. आपको एक बात याद दिला दूँ की इस पूरी यात्रा में मैं एक गाइड का भी काम कर रहा था. दिल्ली का एक नक्शा हाथ में लेकर के बैठा था. और ड्राईवर को गाइड कर रहा था. 

इण्डिया गेट (भारत द्वार) 

नई दिल्ली के राजपथ पर स्थित ४३ मीटर ऊँचा द्वार है। इस द्वार का निर्माण प्रथम विश्वयुद्ध और अफ़ग़ान युद्धों में शहीद हुए सैनिकों की स्मृति में किया गया था। सैनिकों की स्मृति में यहाँ एक राइफ़ल के ऊपर सैनिक की टोपी सजाई गई है जिसके चार कोनों पर सदैव अमर जवान ज्योति जलती रहती है। इसकी दीवारों पर हजारों शहीद सैनिकों के नाम खुदे हैं। इसके सबसे ऊपर अंग्रेजी में लिखा हैः

To the dead of the Indian armies who fell honoured in France and Flanders Mesopotamia and Persia East Africa Gallipoli and elsewhere in the near and the far-east and in sacred memory also of those whose names are recorded and who fell in India or the north-west frontier and during the Third Afgan War.

भारतीय सेनाओं के शहीदों के लिए, जो फ्रांसऔर फ्लैंडर्स मेसोपोटामिया फारस पूर्वी अफ्रीका गैलीपोली और निकटपूर्व एवं सुदूरपूर्व की अन्य जगहों पर शहीद हुए, और उनकी पवित्र स्मृति में भी जिनके नाम दर्ज़ हैं और जो तीसरे अफ़ग़ान युद्ध में भारत में या उत्तर-पश्चिमी सीमा पर मृतक हुए।(साभार विकिपीडिया) 

इंडिया गेट 

इंडिया गेट पर उस समय मार्च पास्ट चल रहा था. वंहा पर सेना का बैंड, तथा वायु सेना के जवान मनोहारी परेड कर रहे थे. देशभक्ति की धुन बज रही थी. अपने जवानो को देख कर सीना गर्व से चौड़ा हो गया. 

मिलिटरी बैंड के द्वारा प्रदर्शन 

वायु सेना के जवानो के द्वारा मार्च पास्ट 

इसका नाम भारतीय महा द्वार होना चाहिए 

समझ में नहीं आता हैं की अंग्रेजो के लिए विश्व युद्ध में अपने जवानों के द्वारा क़ुरबानी पर गर्व करू या इसे गुलामी की निशानी मानु.

हमारा परिवार 

इंडिया गेट से होकर के हम सीधे बिरला मंदिर पहुंचे. यह मंदिर लक्ष्मी नारायण मंदिर के नाम से भी जाना जाता हैं. भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी को समर्पित यह मंदिर दिल्ली के प्रमुख मंदिरों में से एक है। इसका निर्माण 1938 में हुआ था और इसका उद्घाटन राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने किया था। बिड़ला मंदिर अपने यहाँ मनाई जाने वाली जन्माष्टमी के लिए भी प्रसिद्ध है।

बिरला मंदिर 

बिरला मंदिर पीछे से 

हिन्दू हृदय सम्राट वीर शिवाजी 

साईं बाबा मंदिर 

मंदिर में गुफा 

एक और गुफा 

दक्षिण भारतीय निर्माण शैली में मंदिर 

नीलम, चन्द्रगुप्त मौर्य की मूर्ती के पास 

वैश्य कुल गौरव चन्द्रगुप्त मौर्य 

मंदिर और झरना 

बिरला मंदिर में २ घंटे बिताने के बाद हम लाल किला पहुंचे. लाल किला यमुना के किनारे मुग़ल बादशाह शाहजांह ने बनवाया था. इसका निर्माण सं १६३९ में किया गया था. लाल किला भारत की सत्ता का प्रतीक है. मुग़ल काल में सम्पूर्ण भारत को यंहा से शासित किया जाता था. बाद में अंग्रेजो ने इसमें अपनी छावनी बनायी. आज भी इसके एक हिस्से पर सेना का नियंत्रण है. ये किला भारत की शासन सत्ता का प्रतीक है. इस पर हमेशा तिरंगा लहराता रहता है. १५ अगस्त को प्रधानमन्त्री के द्वारा झंडारोहण किया जाता है. व २१ तोपों की सलामी ली जाती है. 

लाल किला या लाल कोट 

लाल किले का मुख्य द्वार , लाहौरी दरवाजा 

दीवाने आम 

दीवाने आम का प्रांगन एक खुला मैदान हैं, यह मैदान आम जनता के लिए था. 

विश्व स्मारक का विवरण शिला पट 

संगमरमर का महल और नहर

ये ऊपर महल के फोटो में जो गहरा स्थान दिखाई दे रहा हैं, दरअसल वो नहरे थी. जिनमे से होकर के यमुना नदी का जल जो की एक बुर्ज तक चढाया जाता था, वो जल इसमें से होकर के बहता था. 

लाल किले के पीछे का हिस्सा 

ये ऊपर आपको लालकिले का पीछे का हिस्सा दिखाई दे रहा हैं. ये जो मैदान हैं ये पहले चोर बाज़ार हुआ करता था. अब ये चोर बाज़ार जमा मस्जिद के पास है. दूर रिंग रोड भी दिखाई दे रहीं है. 

छोटे नवाब कुछ परेशान हैं 

खुला मैदान और शानदार निर्माण 

मोती मस्जिद 

थक कर बैठ गए बेचारे 

भीड़ अन्दर की और जाती हुई 

लाल किले का विहंगम नज़ारा 

वैसे लाल किले का एक तिहाई हिस्सा ही देखने के लिए खोला हुआ है. पर इसी में लोग थक जाते है. हमें भी शाम होने को आ गयी थी. वैसे तो दिल्ली घूमने के लिए कम से कम तीन चार दिन चाहिए, पर हमने २ दिन में बहुत कुछ घूमने का प्रयास किया. बाकी दिल्ली फिर कभी......