Sunday, November 4, 2012

माता वैष्णोदेवी यात्रा भाग - ४ (माता का भवन और भैरो घाटी)

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  1. माता वैष्णोदेवी यात्रा भाग -१ ( मुज़फ्फरनगर से कटरा )
  2. माता वैष्णोदेवी की यात्रा भाग -२ (बान गंगा से चरण पादुका)
  3. माता वैष्णोदेवी की यात्रा भाग -३ (चरण पादुका से माता का भवन)
मनोकामना भवन से हम लोग तैयार होकर व नहा धोकर माता के दर्शन के लिए चल पड़े. उस समय रात्रि के करीब दस बज रहे थे. जब हम लोग सबसे पहली एंट्री पर पहुंचे तो कोई भी लाइन नहीं थी. बड़े आराम से अपनी तलाशी देने के बाद हम लोग आगे बढ़ गए. एक बात का जरूर ध्यान रखना चाहिए, कि जब भी नहा धोकर दर्शन के लिए चलो तो अपने पास कोई भी चमड़े कि वस्तु, पर्स, बेल्ट, कंघा, मोबाइल, कैमरा आदि नहीं होना चाहिए. केवल प्रसाद और जो कुछ भी माता के दरबार में चढाना हो वह होना चाहिए. यात्रा कि पर्ची जरूर साथ में होनी चाहिए, क्योंकि पर्ची पहली एंट्री में चेक होती हैं. अपने जूते, चप्पल, आदि भी अपने कमरे या क्लोक रूम में ही रख कर आने चाहिए. खैर हम लोग नारियल जमा करने के स्थान पर पहुँच जाते हैं. वंहा पर हमारा नारियल जमा होकर के एक टोकन मिलता, जिससे दर्शन करने के बाद एक नारियल वापिस मिल जाता हैं. यह प्रकिया सुरक्षा कि द्रष्टि से की गयी हैं. धीरे धीरे चलते हुए हम लोग मुख्य गुफा के बाहर पहुँच जाते हैं. यंहा पर दर्शन करने के लिए दो गुफाए बनी हुई हैं, जिस कारण से जल्दी जल्दी दर्शन हो जाते हैं. सभी गुफाए माता की पिंडियो के सामने जाकर समाप्त होती हैं. वापिस आने के लिए अलग से गुफाए बनी हुई हैं. हम लोग माता की पिंडियो के पास पहुँच जाते हैं. और माता के दर्शन करके माथा टेकते हैं. माता के दर्शन करके ऐसा लगता हैं की जैसे हमने सब कुछ पा लिया हो. हमें सब कुछ मिल गया हो. जय माता की

माता की पवित्र पिंडिया (साभार : maavaishnodevi.org)

वैष्णो देवी मंदिर (हिन्दी: वैष्णोदेवी मन्दिर), शक्ति को समर्पित एक पवित्रतम हिंदू मंदिर है, जो भारत के जम्मू और कश्मीर में वैष्णो देवी की पहाड़ी पर स्थित है. हिंदू धर्म में वैष्णो देवी, जो माता रानी और वैष्णवी के रूप में भी जानी जाती हैं, देवी मां का अवतार हैं.

मंदिर, जम्मू और कश्मीर राज्य के जम्मू जिले में कटरा नगर के समीप अवस्थित है. यह उत्तरी भारत में सबसे पूजनीय पवित्र स्थलों में से एक है. मंदिर, 5,200 फ़ीट की ऊंचाई औरकटरा से लगभग 12 किलोमीटर (7.45 मील) की दूरी पर स्थित है. हर साल लाखों तीर्थयात्री मंदिर का दर्शन करते हैं और यह भारत में तिरूमला वेंकटेश्वर मंदिर के बाद दूसरा सर्वाधिक देखा जाने वाला धार्मिक तीर्थ-स्थल है. इस मंदिर की देख-रेख श्री माता वैष्णो देवी तीर्थ मंडल द्वारा की जाती है. तीर्थ-यात्रा को सुविधाजनक बनाने के लिए उधमपुर से कटरा तक एक रेल संपर्क बनाया जा रहा है.

कहते हैं पहाड़ों वाली माता वैष्णो देवी सबकी मुरादें पूरी करती हैं। उसके दरबार में जो कोई सच्चे दिल से जाता है, उसकी हर मुराद पूरी होती है। ऐसा ही सच्चा दरबार है- माता वैष्णो देवी का।

माता का बुलावा आने पर भक्त किसी न किसी बहाने से उसके दरबार पहुँच जाता है। हसीन वादियों में त्रिकूट पर्वत पर गुफा में विराजित माता वैष्णो देवी का स्थान हिंदुओं का एक प्रमुख तीर्थ स्थल है, जहाँ दूर-दूर से लाखों श्रद्धालु माँ के दर्शन के लिए आते हैं।

क्या है मान्यता

माता वैष्णो देवी को लेकर कई कथाएँ प्रचलित हैं। एक प्रसिद्ध प्राचीन मान्यता के अनुसार माता वैष्णो के एक परम भक्त श्रीधर की भक्ति से प्रसन्न होकर माँ ने उसकी लाज रखी और दुनिया को अपने अस्तित्व का प्रमाण दिया। एक बार ब्राह्मण श्रीधर ने अपने गाँव में माता का भण्डारा रखा और सभी गाँववालों व साधु-संतों को भंडारे में पधारने का निमंत्रण दिया। पहली बार तो गाँववालों को विश्वास ही नहीं हुआ कि निर्धन श्रीधर भण्डारा कर रहा है। श्रीधर ने भैरवनाथ को भी उसके शिष्यों के साथ आमंत्रित किया गया था। भंडारे में भैरवनाथ ने खीर-पूड़ी की जगह मांस-मदिरा का सेवन करने की बात की तब श्रीधर ने इस पर असहमति जताई। अपने भक्त श्रीधर की लाज रखने के लिए माँ वैष्णो देवी कन्या का रूप धारण करके भण्डारे में आई। भोजन को लेकर भैरवनाथ के हठ पर अड़ जाने के कारण कन्यारूपी माता वैष्णो देवी ने भैरवनाथ को समझाने की कोशिश की किंतु भैरवनाथ ने उसकी एक ना मानी। जब भैरवनाथ ने उस कन्या को पकड़ना चाहा, तब वह कन्या वहाँ से त्रिकूट पर्वत की ओर भागी और उस कन्यारूपी वैष्णो देवी हनुमान को बुलाकर कहा कि भैरवनाथ के साथ खेलों मैं इस गुफा में नौ माह तक तपस्या करूंगी । इस गुफा के बाहर माता की रक्षा के लिए हनुमानजी ने भैरवनाथ के साथ नौ माह खेला। आज इस पवित्र गुफा को 'अर्धक्वाँरी' के नाम से जाना जाता है। अर्धक्वाँरी के पास ही माता की चरण पादुका भी है। यह वह स्थान है, जहाँ माता ने भागते-भागते मुड़कर भैरवनाथ को देखा था। कहते हैं उस वक्त हनुमानजी माँ की रक्षा के लिए माँ वैष्णो देवी के साथ ही थे। हनुमानजी को प्यास लगने पर माता ने उनके आग्रह पर धनुष से पहाड़ पर एक बाण चलाकर जलधारा को निकाला और उस जल में अपने केश धोए। आज यह पवित्र जलधारा 'बाणगंगा' के नाम से जानी जाती है, जिसके पवित्र जल का पान करने या इससे स्नान करने से भक्तों की सारी व्याधियाँ दूर हो जाती हैं। त्रिकुट पर वैष्णो मां ने भैरवनाथ का संहार किया तथा उसके क्षमा मांगने पर उसे अपने से उंचा स्थान दिया कहा कि जो मनुष्य मेरे दर्शन के पशचात् तुम्हारे दर्शन नहीं करेगा उसकी यात्रा पूरी नहीं होगी। अत: श्रदालु आज भी भैरवनाथ के दर्शन को अवशय जाते हैं।

भैरोनाथ मंदिर

जिस स्थान पर माँ वैष्णो देवी ने हठी भैरवनाथ का वध किया, वह स्थान आज पूरी दुनिया में 'भवन' के नाम से प्रसिद्ध है। इस स्थान पर माँ काली (दाएँ), माँ सरस्वती (मध्य) और माँ लक्ष्मी पिंडी (बाएँ) के रूप में गुफा में विराजित है, जिनकी एक झलक पाने मात्र से ही भक्तों के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। इन तीनों के सम्मि‍लित रूप को ही माँ वैष्णो देवी का रूप कहा जाता है।

भैरवनाथ का वध करने पर उसका शीश भवन से 3 किमी दूर जिस स्थान पर गिरा, आज उस स्थान को 'भैरोनाथ के मंदिर' के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि अपने वध के बाद भैरवनाथ को अपनी भूल का पश्चाताप हुआ और उसने माँ से क्षमादान की भीख माँगी। माता वैष्णो देवी ने भैरवनाथ को वरदान देते हुए कहा कि मेरे दर्शन तब तक पूरे नहीं माने जाएँगे, जब तक कोई भक्त मेरे बाद तुम्हारे दर्शन नहीं करेगा।

हिंदू महाकाव्य के अनुसार, मां वैष्णो देवी ने भारत के दक्षिण में रत्नाकर सागर के घर जन्म लिया. उनके लौकिक माता-पिता लंबे समय तक निःसंतान थे. दैवी बालिका के जन्म से एक रात पहले, रत्नाकर ने वचन लिया कि बालिका जो भी चाहे, वे उसकी इच्छा के रास्ते में कभी नहीं आएंगे. मां वैष्णो देवी को बचपन में त्रिकुटा नाम से बुलाया जाता था. बाद में भगवान विष्णु के वंश से जन्म लेने के कारण वे वैष्णवी कहलाईं. जब त्रिकुटा 9 साल की थीं, तब उन्होंने अपने पिता से समुद्र के किनारे पर तपस्या करने की अनुमति चाही. त्रिकुटा ने राम के रूप में भगवान विष्णु से प्रार्थना की. सीता की खोज करते समय श्री रामअपनी सेना के साथ समुद्र के किनारे पहुंचे. उनकी दृष्टि गहरे ध्यान में लीन इस दिव्य बालिका पर पड़ी. त्रिकुटा ने श्री राम से कहा कि उसने उन्हें अपने पति के रूप में स्वीकार किया है. श्री राम ने उसे बताया कि उन्होंने इस अवतार में केवल सीता के प्रति निष्ठावान रहने का वचन लिया है. लेकिन भगवान ने उसे आश्वासन दिया कि कलियुग में वे कल्कि के रूप में प्रकट होंगे और उससे विवाह करेंगे.

इस बीच, श्री राम ने त्रिकुटा से उत्तर भारत में स्थित माणिक पहाड़ियों की त्रिकुटा श्रृंखला में अवस्थित गुफ़ा में ध्यान में लीन रहने के लिए कहा.रावण के विरुद्ध श्री राम की विजय के लिए मां ने 'नवरात्र' मनाने का निर्णय लिया. इसलिए उक्त संदर्भ में लोग, नवरात्र के 9 दिनों की अवधि में रामायण का पाठ करते हैं. श्री राम ने वचन दिया था कि समस्त संसार द्वारा मां वैष्णो देवी की स्तुति गाई जाएगी. त्रिकुटा, वैष्णो देवी के रूप में प्रसिद्ध होंगी और सदा के लिए अमर हो जाएंगी.

समय के साथ-साथ, देवी मां के बारे में कई कहानियां उभरीं. ऐसी ही एक कहानी है श्रीधर की.

श्रीधर मां वैष्णो देवी का प्रबल भक्त थे. वे वर्तमान कटरा कस्बे से 2 कि.मी. की दूरी पर स्थित हंसली गांव में रहता थे. एक बार मां ने एक मोहक युवा लड़की के रूप में उनको दर्शन दिए. युवा लड़की ने विनम्र पंडित से 'भंडारा' (भिक्षुकों और भक्तों के लिए एक प्रीतिभोज) आयोजित करने के लिए कहा. पंडित गांव और निकटस्थ जगहों से लोगों को आमंत्रित करने के लिए चल पड़े. उन्होंने एक स्वार्थी राक्षस 'भैरव नाथ' को भी आमंत्रित किया. भैरव नाथ ने श्रीधर से पूछा कि वे कैसे अपेक्षाओं को पूरा करने की योजना बना रहे हैं. उसने श्रीधर को विफलता की स्थिति में बुरे परिणामों का स्मरण कराया. चूंकि पंडित जी चिंता में डूब गए, दिव्य बालिका प्रकट हुईं और कहा कि वे निराश ना हों, सब व्यवस्था हो चुकी है.उन्होंने कहा कि 360 से अधिक श्रद्धालुओं को छोटी-सी कुटिया में बिठा सकते हो. उनके कहे अनुसार ही भंडारा में अतिरिक्त भोजन और बैठने की व्यवस्था के साथ निर्विघ्न आयोजन संपन्न हुआ. भैरव नाथ ने स्वीकार किया कि बालिका में अलौकिक शक्तियां थीं और आगे और परीक्षा लेने का निर्णय लिया. उसने त्रिकुटा पहाड़ियों तक उस दिव्य बालिका का पीछा किया. 9 महीनों तक भैरव नाथ उस रहस्यमय बालिका को ढूँढ़ता रहा, जिसे वह देवी मां का अवतार मानता था. भैरव से दूर भागते हुए देवी ने पृथ्वी पर एक बाण चलाया, जिससे पानी फूट कर बाहर निकला. यही नदी बाणगंगा के रूप में जानी जाती है. ऐसी मान्यता है कि बाणगंगा (बाण: तीर) में स्नान करने पर, देवी माता पर विश्वास करने वालों के सभी पाप धुल जाते हैं.नदी के किनारे, जिसे चरण पादुका कहा जाता है, देवी मां के पैरों के निशान हैं, जो आज तक उसी तरह विद्यमान हैं.इसके बाद वैष्णो देवी ने अधकावरी के पास गर्भ जून में शरण ली, जहां वे 9 महीनों तक ध्यान-मग्न रहीं और आध्यात्मिक ज्ञान और शक्तियां प्राप्त कीं. भैरव द्वारा उन्हें ढूंढ़ लेने पर उनकी साधना भंग हुई. जब भैरव ने उन्हें मारने की कोशिश की, तो विवश होकर वैष्णो देवी ने महाकाली का रूप लिया. दरबार में पवित्र गुफ़ा के द्वार पर देवी मां प्रकट हुईं. देवी ने ऐसी शक्ति के साथ भैरव का सिर धड़ से अलग किया कि उसकी खोपड़ी पवित्र गुफ़ा से 2.5 कि.मी. की दूरी पर भैरव घाटी नामक स्थान पर जा गिरी.

भैरव ने मरते समय क्षमा याचना की. देवी जानती थीं कि उन पर हमला करने के पीछे भैरव की प्रमुख मंशा मोक्ष प्राप्त करने की थी.उन्होंने न केवल भैरव को पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति प्रदान की, बल्कि उसे वरदान भी दिया कि भक्त द्वारा यह सुनिश्चित करने के लिए कि तीर्थ-यात्रा संपन्न हो चुकी है, यह आवश्यक होगा कि वह देवी मां के दर्शन के बाद, पवित्र गुफ़ा के पास भैरव नाथ के मंदिर के भी दर्शन करें.इस बीच वैष्णो देवी ने तीन पिंड (सिर) सहित एक चट्टान का आकार ग्रहण किया और सदा के लिए ध्यानमग्न हो गईं.

इस बीच पंडित श्रीधर अधीर हो गए. वे त्रिकुटा पर्वत की ओर उसी रास्ते आगे बढ़े, जो उन्होंने सपने में देखा था.अंततः वे गुफ़ा के द्वार पर पहुंचे. उन्होंने कई विधियों से 'पिंडों' की पूजा को अपनी दिनचर्या बना ली. देवी उनकी पूजा से प्रसन्न हुईं. वे उनके सामने प्रकट हुईं और उन्हें आशीर्वाद दिया. तब से, श्रीधर और उनके वंशज देवी मां वैष्णो देवी की पूजा करते आ रहे हैं.(साभार : विकी पेडिया)

माता की पवित्र पिंडियो के दर्शन करके, माता का आशीर्वाद पाकर के और गुफा से बाहर निकलकर हम लोगो ने माता के चरणों से निकलते पवित्र जल चरणामृत का पान किया और उसे अपने ऊपर छिड़का. माता से प्रार्थना की मैय्या जल्दी फिर से बुलाना. आगे चलकर टोकन वापिस करके प्रसाद का नारियल प्राप्त किया. यंही पर प्रसाद के रूप में हलवा भी मिलता हैं और माता  के प्रसाद और खजाने से भरी हुई एक एक पुडिया भी मिलती हैं. यंहा से थोडा आगे चलकर नीचे की और उतरकर महादेव की गुफा भी हैं, जंहा जाकर के महादेव के पवित्र शिव  लिंगम के दर्शन किये. कहा जाता हैं की जंहा जंहा शक्ति हैं वंही पर शिव विराजमान होते हैं. 

माता के दर्शन करके, और भगवान शिव के दर्शन करके हम लोग भोजनालय में आ जाते हैं. जंहा पर पहले कढ़ी चावल और फिर चाय का आनंद लिया . कढ़ी चावल, छोले चावल, छोले भठूरे  की प्लेट २० रूपये में और चाय चार रूपये में मिलती हैं. खा पीकर हम लोग वापिस मनो कामना भवन में आकर के लंबी तान कर और घोड़े बेच कर सो जाते हैं.    

सुबह ६ बजे आँख खुलती हैं. उठ कर अपने कम्बल जमा करा कर आते हैं. और नीचे भोजनालय में आकर के एक एक कप चाय पीकर भैरो देव की और चल पड़ते हैं.  माता के भवन से भैरो देव की दूरी करीब २ किलोमीटर पड़ती हैं. बिलकुल खड़ी चढाई हैं. करीब साढ़े सात बजे हम लोग भैरो देव पर पहुँच जाते हैं. आरती के कारण से लाइन लंबी लगी हुई थी इसी लिए थोड़ी देर धूप में विश्राम करने बैठ जाते हैं.

माता का पवित्र भवन

भैरो देव से माता के भवन का चित्र  

गुनगुनी धूप में भैरो देव के मंदिर के सामने बने प्लेटफार्म पर बैठ जाते हैं और थोड़ी देर विश्राम करते हैं. यंहा पर भी श्राइन बोर्ड की तरफ से प्रसाद की  दुकान बनी हुई हैं. और एक भोजनालय भी बना हुआ हैं. थोड़ी देर बाद जब भीड़ कम हो जाती हैं तो भैरो  नाथ के दर्शन करते हैं. 

भैरो नाथ का मंदिर 

एक और दृश्य 

भैरो मंदिर से सुन्दर दृश्य 

सुन्दर घाटी

माता के द्वार को जाने के लिए बने मार्ग 

सुन्दर पहाड़ 

भैरो  मंदिर के सामने 

भैरो मंदिर पर थोड़ी देर रुकने के बाद हम लोग नीचे की और चल पड़े. और थोड़ी देर में सांझी छत पहुँच जाते हैं. यंही पर हमें हमारे दूर के एक रिश्तेदार भी मिले, जो की बडौत , जिला बागपत (उ. प्र.) से आये हुए थे. मैं उनका फोटो नहीं ले पाया था. जिसका मुझे आगे जाकर के ध्यान आया. 

सांझी छत से कटरा रेलवे स्थानक 

ये ऊपर वाला चित्र कटरा में बन रहे रेलवे स्टेशन का हैं. जनवरी २०१३ से कटरा तक रेल पहुँच जायेगी. जिसका   तीर्थ यात्रियों को बहुत आराम हो जायेंगा. समय भी बचेगा और पैसे भी बंचेगे. 

सांझी छत से कटरा नगर 

सांझी छत हेली पैड 

सांझी छत का एक दृश्य 

सांझी छत 

अर्ध कुंवारी 

हम लोग अर्ध कुंवारी पहुँच कर करीब आधा घंटा विश्राम करते हैं और कुछ खा पीकर के आगे की और नीचे कटरा चल पड़ते हैं. हम लोग करीब २ बजे बाण गंगा पहुँच जाते हैं. और बाण गंगा  से टम्पू करके अपने होटल मालती पैलेस पहुँच जाते हैं.  होटल में पहुँच कर घोड़े बेच कर सो जाते हैं. करीब छह बजे उठ कर नहा धोकर, कटरा में घूमने के लिए निकल पड़ते हैं. कटरा के फोटो मैंने अपनी पहली पोस्ट "माता वैष्णोदेवी यात्रा भाग -१ ( मुज़फ्फरनगर से कटरा)" में डाले हैं. होटल में खाना खाने के बाद, बाज़ार घूमने के बाद करीब दस बजे हम लोग आकार के सो जाते हैं 

अगली सुबह हमें धनसर बाबा, झज्जर कोटली आदि के लिए जाना था. इसका वृत्तान्त  आप लोग 

Sunday, October 21, 2012

माता वैष्णोदेवी यात्रा - भाग ३ (चरणपादुका से माता का भवन)

इस यात्रा को शुरू से पढ़ने के लिए क्लिक करे....


  1. माता वैष्णो देवी यात्रा भाग -१ (मुज़फ्फरनगर से कटरा - KATRA VAISHNODEVI)
  2. माता वैष्णोदेवी यात्रा भाग -२ (बाण गंगा से चरण पादुका)
हम लोग चरण पादुका से आगे बढे ही थे की मौसम खराब होना शुरू हो गया था. यंहा तक हम पसीने में तर थे और थक कर चूर थे, क्योंकि गर्मी बहुत थी. बादल छाने से ठंडी हवाए चलनी शुरू हो गयी थी. ठंडी हवा चलने से पसीने सूख  गए थे, और अब थकान भी महसूस नहीं हो रही थी. माता की यात्रा के पुरे रास्ते में खाने पीने की अच्छी सुविधाए है. और ये सुविधाए श्राइन बोर्ड के द्वारा प्रदान की जाती हैं. ऐसे ही एक हट में बैठ कर चाय और स्नैक्स का आनंद लिया. इसी बीच थोदा सा बूंदा बांदी भी शुरू हो गयी थी. ऐसे समय ही ये नीचे वाला फोटो लिया था. ऊपर काले बादल, नीचे कटरा नगर में धूप खिली हुई थी.

नीचे कटरा नगर ऊपर काले बादल 
बारिश रुकने के बाद थोड़ा आगे चले ही थे की एक अजब नज़ारा देखा, एक वानर महोदय फ्रूटी का आनंद उठा रहे थे. ज़नाब कहने लगे मेरा भी क्या कसूर हैं, एक फोटो मेरा भी ले लो.

बन्दर महाशय फ्रूटी का आनंद लेते हुए 

थक कर बैठ गए 

धीरे धीरे चलते हुए, रुकते हुए, बैठते हुए, हम लोग उस दो राहे पर आ गए थे, जंहा से एक रास्ता  अर्ध कुंवारी की और जाता हैं. और बांये से एक रास्ता नीचे की और से माता के भवन की और जाता हैं. अर्ध कुंवारी की और से माता के भवन पर जाने के लिए हाथी मत्था की कठिन चढाई चढनी पड़ती हैं. और इधर से दूरी करीब साढ़े छह  किलो मीटर पड़ती हैं. जबकि नीचे वाले रास्ते से चढाई बहुत  कम पड़ती हैं. और इधर से माता के भवन की दूरी  करीब पांच किलो मीटर पड़ती हैं.  अर्ध कुंवारी माता के भवन की यात्रा में ठीक मध्य में पड़ता हैं. यंहा पर माता का एक मंदिर, गर्भ जून गुफा, और बहुत से रेस्टोरेंट, भोजनालय, डोर मेट्री आदि बने हुए हैं. यंहा पर यात्री गण थोड़ी देर विश्राम करके, गर्भ जून की गुफा, व माता के दर्शन करते हैं, फिर आगे की यात्रा करते हैं. पर हम लोग नीचे के रास्ते से जाते हैं, और वापिस आते हुए माता के दर्शन करते हैं. ये कंहा जाता हैं की माता वैष्णो देवी इस गुफा में नो महीने रही थी, और गुफा के द्वार पर हनुमान जी पहरा देते रहे थे. भैरो नाथ माता को ढूँढता घूम रहा था, और माता इस गुफा से निकल कर आगे बढ़ गयी थी.

हम लोग नीचे वाले रास्ते से आगे बढ़ गए थे. मौसम फिर से  खराब होना शुरू हो गया था. माता के भवन की यात्रा के मार्ग में थोड़ी थोड़ी दूर पर टिन शेड बने हुए हैं. जिनमे मौसम खराब होने पर व बारिस होने पर रुक सकते हैं. बारिश होने से हम लोग भी एक टिन शेड में रुक गए थे. 

मौसम का नज़ारा 
ऊपर थोड़े से बादल थे, जिनमे से भगवान सूर्य झाँकने की कोशिश कर रहे थे. और बारिश जारी थी , बारिश हलकी होने के बाद भी मौसम में कोहरा छाया हुआ था. बहुत से लोग अपनी पोलीथीन की बनी हुई बरसाती ओढकर यात्रा के लिए आगे बढ़ने शुरू हो गए थे. बहुत ही प्यारा और  खूबसूरत मौसम हो गया था. 

कोहरा ओर बारिश साथ साथ 
इसी समय कोई यात्री जो दर्शन करके ऊपर से आ रहे थे, उनका प्रसाद का थैला और माता की चुनरी बन्दर  छीन कर एक हट के ऊपर चढ गया था. और वो लोग उससे अपना सामान वापस लाने का प्रयास कर रहे थे. यात्रियों को एक बात ध्यान रखनी चाहिए की अपना प्रसाद वगैरा किसी थैले के अंदर रखना चाहिए, क्योंकि मार्ग में बन्दर और लंगूर बहुत अधिक मिलते हैं, जो की यात्रियों से प्रसाद आदि झपट्टा मार कर छीन लेते हैं. 
  
बन्दर महाशय प्रसाद का आनंद लेते हुए 
थोड़ी देर बाद ही हम लोग हिम कोटी पहुँच जाते हैं, यंहा पर दूर दूर तक कोहरा छाया हुआ था. और ठंडी हवाए चल रही थी. यंहा पर श्राइन बोर्ड के भोजनालय में चाय, साम्भर बड़ा, डोसा आदि मिल जाता हैं. जो कि बहुत ही स्वादिष्ट होता हैं. जिनके रेट भी वाजिब हैं. 

हिम कोटी भोजनालय 

कोहरे से ढंके हुए पेड़ 
हिम कोटी से आगे निकलते ही मौसम खुलना शुरू हो जाता हैं. भगवान सूर्य देव कि खिली हुई  सुनहरी धूप से दिल खुश हो जाता हैं. 

खिली हुई धुप निकलने के बाद 


भगवान सूर्य की बादलों से आँख मिचोली 


पर्वतो के ऊपर बादल, उनके ऊपर भगवान सूर्य 

एक ओर सुन्दर दृश्य 


सुन्दर प्यारा दृश्य 

चटखदार पीली धुप 

पीली धुप में रंगे पर्वत, पेड़ 

नीचे पर्वत, बीच में बादल, ऊपर पर्वत 

माता के भवन को जाने वाला मार्ग 
ये फोटो में ऊपर वाला रास्ता सांझी छत से माता के भवन की और जाता हैं. नीचे वाला रास्ता हिम कोटी से माता के भवन की और जाता हैं. 


तीर्थ यात्रियों के रुकने के लिए बने शेड्स 

देवी द्वार 

यह प्राकृतिक रूप से बना हुआ एक द्वार हैं, जिसे देवी द्वार कहा जाता हैं. इस द्वार के दोनों और चट्टानें व बीच में जाने के लिए मार्ग हैं. सूर्यास्त होना शुरू हो चुका हैं. मौसम भी खुलकर बिलकुल साफ़ हो चुका था. 

भगवान सूर्य अस्त होते हुए 

सूर्यास्त होने के बाद 

मित्रों मैंने इस पोस्ट में माता वैष्णो देवी की यात्रा के मार्ग में मौसम के बदलते हुए रंग, और प्राकृतिक छटा को दिखाने का प्रयास किया हैं.   इसे शब्दों में कम बल्कि चित्रों के द्वारा ज्यादा  दिखाने की कोशिस की हैं. उम्मीद हैं की मेरा ये प्रयास आपको अच्छा लगे. क्योंकि कई बार शब्द वो सन्देश नहीं दे पाते हैं, जो की चित्रों के द्वारा मिल जाता हैं. 

थोड़ी ही आगे बढ़ने पर हमें दूर से माता के भवन के दर्शन हो जाते हैं. दिन छिपता हुआ हैं, और माता का भवन प्रकाश मय हो चुका हैं.  
शाम के समय दूर से माता का भवन
माता के भवन को दूर से देखरे ही माता के जयकारे गूंजने लगते हैं. पैरों की चलने की गति भी बढ़ जाती हैं. माता का द्वार नजदीक लगने लगता हैं. पर जंहा से मैंने ये फोटो लिया था वंहा से अभी माता का द्वार करीब दो किलो मीटर पड़ता हैं.  मित्रों माता के भवन नजदीक आने पर सबसे पहले प्रसाद का काउंटर आता हैं. ये काउंटर श्राइन बोर्ड के द्वारा स्थापित किया हुए हैं. यंहा से आपको वाजिब  रेट पर प्रसाद मिल जाता हैं. प्रसाद में  नारियल आदि होता हैं, जो की एक थैले में होता हैं. प्रसाद काउंटर के ठीक सामने ही पार्वती भवन हैं, जो की अभी बन रहा हैं, इसमें ५०० बिस्तर की डोरमेट्री बनायी जायेगी. अभी फिलहाल इसमें क्लोक रूम काम कर रहा है, जिनमे आप लोग मुफ्त में अपना सामान आदि रख कर ताला बंद कर सकते हो. पार्वती भवन से थोडा आगे ही मनोकामना भवन आता हैं. मनोकामना भवन में ही हमने अपने बेड बुक करा रखे थे. मनो कामना भवन में अंदर जा कर के हमने अपनी एंट्री कराई. और अपने बैड पर पहुंचकर एक घंटा आराम किया. उसके बाद नहाने के लिए बाथ रूम की और प्रस्थान किया. बाथ रूम में गरम पानी के गीज़र लगे हुए है. गरम पानी में नहा कर के सारी थकान उतर जाती हैं. उसके बाद तैयार होकर के दर्शनों के लिए चल दिए. यंहा पर एक बात का ध्यान रखना चाहिए की दर्शन के लिए यदि आप लोग आरती के समय लाइन में लगते हो तो बहुत लंबी लाइन और धक्का मुक्की मिलती हैं, समय भी २-३ घंटे कम से कम लग जाते हैं. हम लोग रात दस  बजे दर्शन के लिए पहुंचे तो हमें कोई भी लाइन नहीं मिली, थोड़ी बहुत माता की गुफा के बाहर जाकर के मिली, परन्तु १०-१५ मिनट में हमें दर्शन हो जाते है. बोलो  सच्चे दरबार की जय...
मनोकामना  यात्री निवास 

इसी मनोकामना यात्री निवास में हम लोग हमेशा रुकते हैं. इसमें नीचे खाने पीने के लिए भोजनालय बना हुआ हैं, और ऊपर ४-५ मंजिलो में डोरमेट्री और कमरे बने हुए हैं. कुछ रूपये ज़मा कराकर के अच्छे कम्बल मिल जाते हैं. अच्छे बैड पड़े हुए हैं. और गरम पानी में नहाने की सुविधा उपलब्ध हैं. यंहा की बुकिंग इन्टरनेट से होती हैं. करेंट बुकिंग भी मिल जाती हैं, यदि स्थान खाली हो तो. इन्टरनेट की बुकिंग का लिंक में नीचे दे रहा हूँ.

SHRI MATA VAISHNO DEVI SHRINE BOARD | Official Website 

  maavaishnodevi.org

यंहा से आगे का यात्रा वृत्तान्त और माता के दर्शन के लिए 





Friday, September 28, 2012

माता वैष्णोदेवी यात्रा - भाग २ (बाण गंगा से चरण पादुका)


मित्रों जय माता की. इस यात्रा वृत्तान्त को शुरुआत से पढ़ने के लिए क्लिक करे...(माता वैष्णोदेवी यात्रा-भाग १ (मुज़फ्फरनगर से कटरा - KATRA VAISHNODEVI)


हम लोग कटरा से थ्री व्हीलर के द्वारा बाण गंगा से पहले दर्शनी दरवाजे पर पहुँच जाते है. टेम्पो यंही तक ही आते हैं. यंहा से पैदल यात्रा शुरू हो जाती हैं. सबसे पहले हमने एक एक डंडा ख़रीदा. १० - १० रूपये में एक डंडा मिल जाता हैं. वापसी में ये डंडा ५ रूपये में ले लेते हैं. पहाड़ पर चढाई करते समय सपोर्ट के लिए डंडा बहुत जरुरी होता हैं. उतरते समय भी डंडा जरुरी होता हैं. पैरों में कैनवस के जूते या फिर स्पोर्ट्स जूते होने चाहिए. चप्पल आदि में चढाई करने में मुश्किल आती हैं. यदि बारिश का मौसम हो तो एक रेनकोट या फिर यंहा पर बीस बीस रूपये में पोलीथीन के बने रेन कोट मिलते हैं. यंही ऊपर से दर्शनी दरवाजे के दर्शन होते हैं. दर्शनी दरवाजा संगमरमर का बना हुआ एक बहुत ही शानदार द्वार हैं. यंही से माता वैष्णोदेवी की पैदल यात्रा शुरू होती हैं. यंहा पर तीर्थ यात्रियों का सामान भी चेक होता हैं. और तलाशी ली  जाती हैं. यात्रियों को एक स्कैनर से होकर के गुजरना पड़ता हैं. यंहा से आगे कई भी यात्री वीडियो कैमरा, बीड़ी, सिगरेट, गुटखा, ताश, आदि सामान नहीं ले जा सकता हैं. डिजिटल कैमरा, वाकमैन  आदि आप लोग आगे ले जा सकते हो. एक बात समझ में नहीं आती हैं कि, कोई भी व्यक्ति डिजिटल कैमरे से वीडियो बना सकता हैं, फिर वीडियो कैमरा क्यों बैन हैं.

ऊपर से दर्शनी द्वार के दर्शन


माता वैष्णो देवी तीर्थ स्थान पर प्रबंधन ओर श्रद्धालुओ की सुविधाए हेतु भारत सरकार ने एक बोर्ड बनाया हुआ हैं. जिसे श्री माता वैष्णोदेवी श्राइन बोर्ड कहा जाता हैं. इस बोर्ड ने तीर्थ यात्रियों की सुविधाओं के लिए स्थान - स्थान पर यात्री निवास, और भोजन की सुविधाए उपलब्ध कराई हुई हैं. ऐसी सुविधाए और प्रबंधन हमारे और किसी भी तीर्थ पर उपलब्ध नहीं हैं. काश ऐसी सुविधाए हमारे सभी तीर्थ स्थानों पर हो जाए तो ये देश स्वर्ग बन जाए. 
मनौती की चुन्दरिया 
दर्शनी द्वार से पहले ये एक बहुत लंबी लोहे की जाली की दीवार हैं. इस पर माता के दर्शन से वापिस आते हुए लोग मनौती के रूप में चुंदरी बांधते  हैं. दूर दूर तक बंधी हुई चुन्दरिया बहुत ही सुन्दर दिखती हैं.

दर्शनी द्वार 
आप देख ही रहे हैं कि आगे दर्शनी द्वार, पीछे बादलों से ढंके हुए पर्वत.

यात्रा से पहले 
दर्शनी द्वार का एक ओर दृश्य
पहाड़ी पर बनता हुआ मंदिर


ऊपर पहाड़ी पर जिस मंदिर को आप देख रहे हैं, इसे हम लोग बचपन से बनते हुए देख रहे हैं. पता नहीं कब होगा ये पूरा. ये मंदिर कटरा में ही एक पहाड़ी पर स्थित हैं.

जय माता की 
ऊपर लोहे कि जालियो की  दीवार पर चुन्दरिया व नीचे घांस के ऊपर सुन्दर "जय माता की " घांस के द्वारा ही उकेरा हुआ हैं. 

पत्थरो पर बना हुआ नक्शा 
दर्शनी द्वार के बाद और बाण गंगा से पहले एक दीवार पर माता वैष्णो देवी की यात्रा का पूरा नक्शा बनाया हुआ हैं.

हम लोग पवित्र बाण गंगा पर पहुँच जाते हैं. बहुत से लोग यंहा पर स्नान करके आगे बढते हैं. हमने भी अपने हाथ, पैर, मुह धोया. माना यह जाता हैं की माता वैष्णोदेवी जब भैरो  देव से छिप कर के आगे बढ़ रही थी तो हनुमान जी भी उनके साथ साथ थे. हनुमान जी को बड़ी जोर की प्यास लगी, उन्होंने मैय्या से कंहा, माता मुझे बड़ी जोर की प्यास लगी हैं. माता ने अपने धनुष बाण के एक तीर को चलाकर के धरती से एक जल का एक स्रौत उत्पन्न किया. उस जल से ही हनुमान जी ने अपनी प्यास बुझाई. इसी जल के स्रौत को ही बाण गंगा कहा जाता हैं. बाण गंगा की जल में अनगिनत सुन्दर मछलिया भी तैरती रहती हैं. बहुत से श्रद्धालु उन्हें आटे की गोलिया खिलाते हैं. बाण गंगा का निर्मल शीतल जल बहुत ही स्वच्छ दीखता हैं, ऐसा लगता हैं की जैसे दूध की नदी बह रही हो.

बाण गंगा में स्नान 

बाण गंगा मंदिर 
यंही पर बाण गंगा जी का मंदिर भी बना हुआ हैं. आप देखिये जब में फोटो ले रहा था तो पुजारी जी भी स्टायल में आ गए थे.

बाणगंगा एक झरने के रूप में 

एक चित्र मेरा भी 
आप लोग देखियेगा, कितना निर्मल, कितना शीतल, कितना पवित्र जल हैं बाण गंगा का. यंहा पर बाण गंगा को एक झरने का रूप दे दिया गया हैं. और उसके आगे स्नान करने के लिए एक कुंड बना दिया गया हैं.

यंही से पैदल रास्ता और सीढ़ियों का रास्ता शुरू हो जाता हैं. वृद्ध और कमजोर, रोगी व्यक्ति को सीढ़ियों का प्रयोग नहीं करना चाहिए. उनके लिए यंहा पर घोड़े, व पालकी उपलब्ध हो जाती हैं. बच्चो व सामान के लिए पिट्ठू उपलब्ध हैं. उन सबका रेट फिक्स होता हैं. पिट्ठू या घोडा तय करने के बाद उनका कार्ड पर जो नाम व नंबर होता हैं उसे अपने पास नोट करके रख लेना चाहिए. कोई बात होने पर श्राइन बोर्ड के कंट्रोल रूम में उनकी शिकायत दर्ज की जा सकती हैं.

थोड़ा सा ही आगे बढ़ने पर हमें माता वैष्णोदेवी गुरुकुल दिखाई दिया. गुरुकुल की सजावट की हुई थी. गुरुकुल का वार्षिक उत्सव चल रहा था. इस गुरुकुल में सैंकडो ब्रह्मचारियो को वैदिक संस्कृति, वेद - पुराणों आदि की शिक्षा दी जाती हैं. यह गुरुकुल एक विशाल इमारत में स्थित हैं. और इसका प्रबंधन माता वैष्णोदेवी श्राइन बोर्ड द्वारा ही किया जाता हैं.

चरण पादुका से पहले मार्ग में गुरुकुल 
गुरुकुल से आगे बढते ही थोड़ी ही दूर पर श्री गीता भवन मंदिर आता हैं. यह मंदिर बहुत ही खूबसूरत बना हुआ हैं. इसके अंदर माता वैष्णोदेवी की शेर पर सवार मूर्ति स्थापित हैं. मंदिर के बाहर एक ओर महा बली पवन पुत्र श्री हनुमान जी की पर्वत उठाये हुए मूर्ती स्थापित हैं. दूसरी और भगवान भोले नाथ, परम  पिता परमेश्वर श्री महादेव की मूर्ति स्थापित हैं.

श्री गीता भवन मंदिर
जय श्री हनुमान जी 

हर हर महादेव 
थोड़ा सा ओर आगे बढते ही चरण पादुका मंदिर आ जाता हैं. इस मंदिर को श्री माता वैष्णोदेवी श्राइन बोर्ड ने दुबारा से पुराने मंदिर की जगह नया बनवाया हैं. मंदिर बहुत ही विशाल बना हुआ हैं. मंदिर के अंदर बैठने की बहुत स्थान हैं. इस मंदिर में माता वैष्णोदेवी के चरण चिन्ह स्थापित हैं. कहा जाता हैं कि भैरव नाथ से बचते हुए जब माता आगे बढ़ रही थी तो इस स्थान पर खड़े होकर के माता ने पीछे मुड़कर के देखा था कि भैरव नाथ आ रहा कि नहीं. इस स्थान पर रुकने के कारण माता के चरण चिन्ह यंहा पर स्थापित हो गए थे. इसी कारण से इस स्थान को चरण पादुका कहा जाता हैं. जो भी भक्त श्रद्धा भाव के साथ यंहा पर मत्था टेकता हैं, माता वैष्णोदेवी उसकी सभी मुरादे पूरी करती हैं. चरण पादुका बाण गंगा से  १.५ किलोमीटर पर स्थित हैं. समुद्र तल से ऊँचाई ३३८० फीट हैं. 

चरण पादुका मंदिर 
मंदिर में लिखा हुआ इतिहास 
चरण पादुका मंदिर पर थोड़ी देर विश्राम किया जा सकता हैं. यंहा पर आस पास थोड़ा बहुत नाश्ता पानी भी किया जा सकता हैं. 

माता की पवित्र मूर्ती 
चरण पादुका से थोड़ा सा आगे ही यह छोटा सा खूबसूरत भगवान शिव का मंदिर आता हैं. यंहा पर मत्था टेक कर हम लोग आगे बढ़ जाते हैं..

चरण पादुका के पास शिव मंदिर 


चरण पादुका पर थोड़ी देर रुकने के बाद हम लोग आगे अर्ध कुंवारी के लिए आगे बढ़ जाते हैं...

आगे का वृत्तान्त जानने के लिए क्लिक करे....(माता वैष्णोदेवी यात्रा - भाग ३ (चरणपादुका से माता का भवन)

जय माता की.